Sunday, 10 May 2020

सुना है

सुना है इंसान कहीं अंधेरे में छुप गया है आजकल
समेट लिए हैं उसने अपने चील से पंख
बाज से नुकीले नाख़ून और पंजे
सुना है आजकल अहंकार से वो घोषित भी नहीं करता पृथ्वी पर अपनी सत्ता का विजयनाद
सुबह शाम की वो भगदड
वो बेवजह शोर सब शांत है
सुना है आजकल प्रकृति पंख पसार रही है पूरी शिद्दत से
चहचहा रही है छोटी चिडिया
जो खो गई थी कहीं कंक्रीट के इस जंगल में
सुना है इंसान को उसके पिंजरे में बंद कर
कुछ दिनों से हवा भी ले रही है चैन की सांस।

2 comments:

  1. Bohoot khoob Saroj..Congrats and best wishes for your blog..Always loved yr lekhni and your style of presenting it..keep it up

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  2. बहुत-बहुत धन्‍यवाद आपका

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