एक लिफाफे में बंद करके
तुम्हें भेजना चाहती हूं
बचपन के वो बीते दिन
नीम के पेड़ की भीगी सी छांव
जमीन पर खींची आढ़ी-तिरछी रेखाएं
छत की थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी सांझ।
जाने भेज भी पाउंगी या नहीं
पर सच में मन है तुम्हे भेजने को
तुम्हारे हिस्से के कच्चे-पक्के आडू
याद है न वह पौधा
जो रोपा था हमनें बरसों पहले।
तुम्हारे हिस्से का जाने क्या-क्या
रखा है बरसों से।
माँ आज भी बांटती है
हर अच्छी-भली चीज
वैसे ही दो हिस्सों में
एक मेरा, एक तुम्हारा।
जाने क्यों कहते हैं लोग
समय भुला देता है सब कुछ
मुझे तो आज भी याद है
दूर किसी खिड़की से झांकती
वो शरारती मुस्कुराहट
जानती हूं संभव नहीं है
फिर भी बहुत दिनों से मन है
सुनने को तुम्हारी आवाज
बहुत ढूंढने की कोशिश की है
हर चेहरे में तुम्हारा चेहरा
या फिर किसी चेहरे में
वो अपनी सी आंखे,
वो अपनी सी हंसी
भेजना चाहती हूं तुम्हे
तुम्हारी मेज पर रखी
तुम्हारे परफ्यूम की आधी शीशी
तुम्हारी नई घड़ी
तुम्हारा वो कोट जिसका बस
नाप भर दिया था तुमने
तुम्हारी वो छोटी सी डायरी
जिस पर अब भी अंकित हो तुम
हर जगह।
पता नहीं भेज पाऊंगी कि नहीं
पर सच में बहुत मन है
भेजने को एक शिकायत भरी चिठ्ठी तुम्हारे नाम।
-डाॅ.सरोज अंथवाल
(माँ के हिस्से का युद्ध से)
तुम्हें भेजना चाहती हूं
बचपन के वो बीते दिन
नीम के पेड़ की भीगी सी छांव
जमीन पर खींची आढ़ी-तिरछी रेखाएं
छत की थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी सांझ।
जाने भेज भी पाउंगी या नहीं
पर सच में मन है तुम्हे भेजने को
तुम्हारे हिस्से के कच्चे-पक्के आडू
याद है न वह पौधा
जो रोपा था हमनें बरसों पहले।
तुम्हारे हिस्से का जाने क्या-क्या
रखा है बरसों से।
माँ आज भी बांटती है
हर अच्छी-भली चीज
वैसे ही दो हिस्सों में
एक मेरा, एक तुम्हारा।
जाने क्यों कहते हैं लोग
समय भुला देता है सब कुछ
मुझे तो आज भी याद है
दूर किसी खिड़की से झांकती
वो शरारती मुस्कुराहट
जानती हूं संभव नहीं है
फिर भी बहुत दिनों से मन है
सुनने को तुम्हारी आवाज
बहुत ढूंढने की कोशिश की है
हर चेहरे में तुम्हारा चेहरा
या फिर किसी चेहरे में
वो अपनी सी आंखे,
वो अपनी सी हंसी
भेजना चाहती हूं तुम्हे
तुम्हारी मेज पर रखी
तुम्हारे परफ्यूम की आधी शीशी
तुम्हारी नई घड़ी
तुम्हारा वो कोट जिसका बस
नाप भर दिया था तुमने
तुम्हारी वो छोटी सी डायरी
जिस पर अब भी अंकित हो तुम
हर जगह।
पता नहीं भेज पाऊंगी कि नहीं
पर सच में बहुत मन है
भेजने को एक शिकायत भरी चिठ्ठी तुम्हारे नाम।
-डाॅ.सरोज अंथवाल
(माँ के हिस्से का युद्ध से)
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