Wednesday, 13 May 2020

बारूदी गंध


कई बार सोचती हूं
वो आदमी जो करता है
बारूद की खेती
क्या उस आदमी के घर में भी
होगी कोई एक खिड़की
जहां से झांकता होगा
एक टुकड़ा धूप का
क्या उसके घर में भी होगी
एक नन्हीं सी बिटिया
जो बालों में सिल्क का लाल रिबन लगाए
घर की खिड़की से झांकती
सूरज की किरणों को छूने की
कोशिश में भागती रहती होगी
चारों तरफ
क्या उसके पास भी होगी
ठीक वैसी ही सुनहरे बालों
वाली गुड़िया
जैसी सिल्क के लाल रिबन
लगाए उस नन्हीं बच्ची
के हाथ में है
जो अपने सैनिक पिता को
अंतिम प्रणाम कर रही है।
सुना है कल रात
बारूद की खेती करने वालों ने
सीमा पर खड़े प्रहरी का सीना
बारूद से छलनी कर दिया
आज प्रहरी के सीने पर तिरंगा है
अंतिम विदाई की धुन के बीच
वो नन्हीं जैसे जानती है कि
हर रोज खिड़की से झांकती
सूरज की किरणों में
वो अनुभव कर पाएगी
अपने पिता की उपस्थिति
लेकिन उससे मीलों दूर
सूरज की किरणों को
पकड़ने की कोशिश करती
बारूद की खेती करने वालों
की नन्हीं
जीवन के हर आराम के बीच
क्या कभी महसूस
कर पाएगी
अपने पिता की हथेलियों
में चिपकी
बारूदी गंध को

डाॅ. सरोज अंथवाल


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