माँ - इतना विस्तार है इस संबोधन में कि माँ पर एक कविता कभी पूर्ण हो ही नहीं सकती। बस एक कोशिश है आशा है इन शब्दों में आप सब भी कहीं न कहीं अपनी माँ का स्पर्श पा सकेंगे...
माँ
हमारे लिए घर तुम ही थीं
और तुम्हारे लिए हम
तुम्हारा संसार
तुम्हारी कहानियों में
जंगल थे,पेड थे,चक्की थी
पसीना था, रिश्ते थे
और थी एक नदी
जिसके उस पार था तुम्हारा बचपन
नौ बरस की उम्र में दुल्हन बन
जिसे पीछे छोड आई थीं
तुम बरसों पहले
पर तुम्हारी यादों में वो हमेशा यूं रहा
जैसे कल की बात हो
अक्सर बातें करते-करते तुम
उस नदी को पार कर लेतीं
और बीन लातीं अपने बचपन की यादें
जिनमें अभाव तो थे पर खुशियों की कमी न थी।
माँ
तुम स्कूल तो नहीं गईं
फिर कैसे जाना जीवन का हिसाब-किताब
कहां से सीखा रिश्तों का गुणा- भाग
कैसे रखा अपने छोटे से बक्से में
घर की हर छोटी-बडी समस्या का इलाज।
माँ
कहाँ से जानीं तुमने जीवन की
अद्भुत कला
बस में बैठ गांव जाते
देवी के मंदिर की तरफ मुंह कर हाथ जोडती
पितरों की धरती की मिट्टी को
माथे से लगाती
हल्दी हाथ में चाची - ताई के साथ मांगल गाती
माँ, तुम ही तो थीं
संस्कृति से मेरी पहली पहचान
माँ
कब सीखा तुमने आकाश सा विस्तार और पर्वत सी सहनशीलता पा लेना
कैसे खडा किया खुद को
छोटे के जाने के बाद
कैसे सहा पिता का जाना
जो धुरी थे तुम्हारे जीवन की।
माँ
कितना जस था
तुम्हारे स्पर्श में
कितने आशीर्वाद तुम्हारी हंसी में ,कितना स्नेह तुम्हारे आंसुऔं में
कि तुमने छुआ, तुमने सुना और जैसे सब ठीक हो गया।
माँ
अपनी लाल बिन्दी और सिन्दूर के साथ
अपनी हंसी और आसुंऔं के साथ
अपने रूमा-झूमा के गीतों के साथ
अपनी अशेष स्मृतियों के साथ
कितनी आसानी से बना दिया तुमने ,मुझको तुम
कि आज
मेरी बिटिया ने मुझे लिखा
माँ
हमारे लिए घर तुम ही हो
और तुम्हारे लिए हम तुम्हारा संसार।
माँ
हमारे लिए घर तुम ही थीं
और तुम्हारे लिए हम
तुम्हारा संसार
तुम्हारी कहानियों में
जंगल थे,पेड थे,चक्की थी
पसीना था, रिश्ते थे
और थी एक नदी
जिसके उस पार था तुम्हारा बचपन
नौ बरस की उम्र में दुल्हन बन
जिसे पीछे छोड आई थीं
तुम बरसों पहले
पर तुम्हारी यादों में वो हमेशा यूं रहा
जैसे कल की बात हो
अक्सर बातें करते-करते तुम
उस नदी को पार कर लेतीं
और बीन लातीं अपने बचपन की यादें
जिनमें अभाव तो थे पर खुशियों की कमी न थी।
माँ
तुम स्कूल तो नहीं गईं
फिर कैसे जाना जीवन का हिसाब-किताब
कहां से सीखा रिश्तों का गुणा- भाग
कैसे रखा अपने छोटे से बक्से में
घर की हर छोटी-बडी समस्या का इलाज।
माँ
कहाँ से जानीं तुमने जीवन की
अद्भुत कला
बस में बैठ गांव जाते
देवी के मंदिर की तरफ मुंह कर हाथ जोडती
पितरों की धरती की मिट्टी को
माथे से लगाती
हल्दी हाथ में चाची - ताई के साथ मांगल गाती
माँ, तुम ही तो थीं
संस्कृति से मेरी पहली पहचान
माँ
कब सीखा तुमने आकाश सा विस्तार और पर्वत सी सहनशीलता पा लेना
कैसे खडा किया खुद को
छोटे के जाने के बाद
कैसे सहा पिता का जाना
जो धुरी थे तुम्हारे जीवन की।
माँ
कितना जस था
तुम्हारे स्पर्श में
कितने आशीर्वाद तुम्हारी हंसी में ,कितना स्नेह तुम्हारे आंसुऔं में
कि तुमने छुआ, तुमने सुना और जैसे सब ठीक हो गया।
माँ
अपनी लाल बिन्दी और सिन्दूर के साथ
अपनी हंसी और आसुंऔं के साथ
अपने रूमा-झूमा के गीतों के साथ
अपनी अशेष स्मृतियों के साथ
कितनी आसानी से बना दिया तुमने ,मुझको तुम
कि आज
मेरी बिटिया ने मुझे लिखा
माँ
हमारे लिए घर तुम ही हो
और तुम्हारे लिए हम तुम्हारा संसार।
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